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आह्वान का नया अवतार

Updated: Oct 12, 2020

सच खोजने के प्रयास शिथिल पड़ सकते है, किन्तु वो कभी समाप्त नहीं होते है। बाधाओं का सामना करते हुए, परिस्थितियों के अनुरूप अपना स्वरूप और दिशा परिवर्तित करते हुए वह अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ते रहते है। रोहन की वसीयत का सच खोजने की जिस यात्रा पर हम निकले थे वो विभिन्न कारणों से कुछ समय के लिए बाधित जरूर हुई, किन्तु मंथर गति से ही सही बढ़ती रही थी।


उस यात्रा से आपके पुनः जुड़ने का समय आ गया है। महाभारत आधारित पौराणिक रहस्य गाथा जारी रहेगी अपने नए रूप में। क्या आप तैयार है इस पुरातन सत्य का आह्वान करने के लिए?


हिन्द युग्म प्रकाशन के सहयोग से महाभारत आधारित पौराणिक रहस्य गाथा का प्रथम उपन्यास ‘खंड 1: आह्वान’ नए अवतार में आपके समक्ष प्रस्तुत है। यह नया संस्करण कथा के मूल स्वरूप से छेड़खानी किए बिना उपन्यास को बेहतर स्वरूप एवं किफायती मूल्य पर आपको सुलभता से उपलब्ध करने का प्रयास है।


मूल उपन्यास ‘खंड 1: आह्वान’ के बारे में कई पाठकों की शिकायत थी कि इसकी रोचक एवं तेज गति की कहानी को बीच में छोड़ते नहीं बनता है, पर उपन्यास लंबा होने के कारण इसे एक बार में पूरा पढ़ने में उन्हें दिक्कत होती है। इसलिए कथा से छेड़छाड़ किए बिना उपन्यास ‘खंड 1: आह्वान’ की प्रस्तुति को बेहतर बनाते हुए इसे दो भागों में विभक्त किया गया है—‘खंड 1: आह्वान’ और ‘खंड 2: स्तुति’। ‘खंड 1: आह्वान’ प्री-आर्डर के लिए उपलब्ध है और शीघ्र ही 'खंड 2: स्तुति' भी प्री-आर्डर के लिए उपलब्ध होगा।


इन प्रयासों में समय लगने के कारण उपन्यास की उपलब्धता पिछले कुछ महीनों से बाधित रही। इस दौरान हमारे जो पाठक गण उपन्यास पढ़ने से वंचित रह गए और जो उपन्यास पुनः उपलब्ध होने की प्रतीक्षा कर रहे है उन सभी के धैर्य को मेरा सादर नमन!


कथा के विषय में आपकी उत्सुकता देखकर प्रसन्नता होती है। कई पाठक इस श्रृंखला को लेकर इतने उत्साहित है कि चाहते है कि मैं अतिशीघ्र शेष उपन्यासों को उनके हाथों में पहुंचा दूँ। उपन्यास के प्रति उनकी उत्सुकता इतनी प्रबल है कि प्रतीत होता है जैसे वे इस कथा को जी रहे हों। कई पाठकों से उपन्यास के विषय में मेरी कई घंटों तक चर्चाएँ हुई। जिस प्रकार वो उपन्यास को बार-बार पढ़कर कहानी की गहराई में जाने का प्रयास कर रहे है वह सराहनीय है।


मैं मानता हूँ कि मेरी कोई भी रचना जिसका एक मामूली अंश भी महाभारत जैसी वृहद कथा के मूल से जुड़ा हो मात्र मेरी नहीं हो सकती है। इसलिए मैं स्वयं को यह कथा लिखने का मात्र माध्यम मानता हूँ, उसका अधिकारी नहीं। इस कथा पर एकमात्र अधिकार उस सनातन व्यवस्था का है जिसके आशीर्वाद ने मुझे और आपको इस कथा का हिस्सा बनने का अवसर प्रदान किया। मुझ माध्यम के लिए आपका प्यार और प्रोत्साहन ही मेरी सर्वश्रेष्ठ पूंजी है। मैं उम्मीद करता हूँ कि उपन्यास अपने नए स्वरूप में आपकी उम्मीदों पर खरा उतरेगा और इतिहास की परतों में खो चुके पात्रों और उनके सच को प्रत्यक्ष करने में मुझे आप सभी का सहयोग प्राप्त होगा।


श्रृंखला के आगामी खंडों पर कार्य तेजी से जारी है। यदि परमात्मा की कृपा रही तो उम्मीद करता है कि उन्हें आप शीघ्र प्राप्त कर सकेंगे। आपकी सुविधा के लिए उपन्यास और इस श्रृंखला से जुड़े कुछ आम सवालों के जबाव यहाँ दिए गए है।


मुझसे जुड़े रहे और उपन्यास के बारे में अपनी प्रतिक्रियाओं से मुझे अवगत कराते रहेें!


 

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